भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आस्था - 54 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:16, 1 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कितना अच्छा होता
मानव लगा सकता बोलियाँ
जहाँ जिंदगी की
खुशियां खरीदने वाले
बेच सकते कुछ प्यार
बाजार में हाहाकार की जगह
दिखाई दे सकती चहल पहल
हँसते-गाते चेहरों की
और गुनगुनाता मानव
करा सकता बोध
यहीं कहीं
विचरण कर रही है
कोई ऐसी आत्मा
जिसकी लोरियों से
मानव भी बन बालक
मार रहा है, किलकारियां।