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आस्था - 56 / हरबिन्दर सिंह गिल

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परंतु मेरी आस्था
मेरे साथ है
मेरी कल्पना की
दुनियाँ की सखी है
क्योंकि कल जब
मैं नहीं रहूँगा
यही मेरी भटकती
आत्मा की होगी साथी।

मुझे निकट भविष्य में
इससे पहले कि
अलविदा कहूँ दुनियाँ से
नहीं लगता
दरवाजे पर बैठी
मेरी माँ-मानवता को
घर के अंदर
आने के लिये कहेगी
उनकी अपनी ही औलाद।