भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आस्था - 67 / हरबिन्दर सिंह गिल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:25, 1 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मानव कितना
अन्जान है
अपना इतिहास बनाने
की चाह में
मानवता को
इतिहास के पन्नों में
लुप्त
कर देना चाहता है।

परंतु
वह भूल रहा है
इतिहास कभी भी
माफ नहीं करता
जो करता है
खिलवाड़ माँ से
क्योंकि वहाँ
जिस गोद में
खेलकर
हुआ है बड़ा
उसके
दामन को ही
चला है करने कलंकित।