भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बचपन - 2 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:12, 2 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बचपन की वो घड़ियाँ
कितनी अनमोल थीं।
उस समय के कितने ही सुहावने पल
आज भी रातों में
जब नींद नहीं आती
लेकर आते हैं, अपने साथ
उन शीतल हवाओं के झोंकों को
जो हर सुबह हमें मिलते थे
उस बरगद के पेड़ से
जिसके नीचे, हम सब स्कूल के बच्चे
एक कतार में खड़े होकर
हाथ जोड़कर, आँखे बंदकर
किया करते थे प्रार्थना।
शायद ये उस प्रार्थना के
बोलों की ही तरंगें हैं
अपने साथ लेकर आती हैं
उन निर्मल हवाओं के झोकों को
दूर कर सके
मानव के उस थके हुए मस्तिष्क को
जिसमें सिर्फ तनाव ही तनाव है।