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स्मरण ही रखना तुम प्रिये! / कविता भट्ट

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हो विवशता प्रति निमिष
या विषधरों से रहो घिरे।
अश्रु नयनों से न छलकें
स्मरण ही रखना तुम प्रिये!

नायिका- सा नृत्य करके
लुभाएगा जग रूप से।
स्वप्ननिर्मित दुर्ग पल के
चरण ही रखना तुम प्रिये!

हो प्रकाशित रूप से निज
कोई तुम को कुछ भी कहे
मायावी जिसमें दिख सकें
दर्पण ही रखना तुम प्रिये!

निशिचरी- सा पाश है यह
राह तृप्तियों की है नहीं
आत्माएँ मृत- स्वप्न तन हैं
तर्पण ही रखना तुम प्रिये!
 
वे वेदनाएँ युवती होकर
जब केश राशि खोल दें।
स्मित अधर, अवसाद का
हरण ही रखना तुम प्रिये!

क्षर जगत यह, प्रेम नित है
यह तो इतना मात्र सत है।
हिय जो कलुषित भाव आए
क्षरण ही रखना तुम प्रिये!

सप्तवर्णी इंद्रधनु अवस्थित
है मेरे चित्त के आकाश में।
तुम हो जीवन तुम हो मुक्ति
रटण ही रखना तुम प्रिये!