भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचपन - 39 / हरबिन्दर सिंह गिल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:53, 9 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

”स्कूल बचपन का एक आश्रम है
जहाँ प्रकृति भी अपने आप से सीखती है।“

इस आश्रम को मैं कविता की पंक्तियों में
कुछ अपने ही अनुभवों में सकारना चाहता हूँ।

मेरा स्कूल मेरा मंदिर है
मंदिर, जिसमें पूजा नहीं होती
होती है, अराधना सत्य की
क्योंकि सत्य ही आधार है विजय का
और यही है ध्येय हमारे स्कूल का।

मेरा स्कूल मेरा घर है
घर, जिसमें लालन-पालन नहीं होता
होता है, मार्गदर्शन आत्मा का
क्योंकि आत्मा ही आधार है जीवन का
और यही है प्रयास हमारे स्कूल का।

मेरा स्कूल मेरा खेल का मैदान है
मैदान जिसमें हार जीत नहीं होती
होती है लड़ाई सिर्फ समय से
क्योंकि समय ही आधार है सफलता का
और यही है लक्ष्य हमारे स्कूल का।

मेरा स्कूल मेरा स्वर्ग है
स्वर्ग जिसमें देवी-देवता नहीं रहते
रहते हैं, मेरे परम पूज्य गुरु
क्योंकि गुरु ही रहा है आधार हर व्यक्तित्व का
और यही है पाठ हमारे स्कूल का।