बचपन - 40 / हरबिन्दर सिंह गिल
”अंत में शत्-शत प्रणाम इस कवि का
हर उस माँ-बाप को
जो जन्म देता है बचपन को।
हर भाई बहन को
जो बाहें हैं बचपन की
हर उस गलियों को
जहाँ बचपन चलना सीखता है।
हर उस स्कूल को
जहाँ जीवन मूल्यों की प्राप्ति होती है।
परन्तु जब शब्द मौसम आता है
अनायास ही कविता जन्म ले लेती है।
कैसा होगा मौसम वो
जब ऋतु सर्दियों की होगी
चल रही होगी हवा शीतल
न होगा कोई कम्बल मखमली
और सड़कों पर पड़े ये ढांचे
ढंक कर रह जायेगें बर्फ तले।
कैसा होगा मौसम वो
जब ऋतु गर्मियों की होगी
चल रही होगी आंधी लू की
न होगा साया वृक्ष का
और रेगिस्तानों में पड़े ये ढाचें
दब कर रह जायेंगे बालू तले।
कैसा होगा मौसम वो
जब ऋतु बरसात की होगी
बहती गंदी गलियों की नालियां
जब बहकर मिलेगें नालों से
साथ होगें अवशेष बहते
जाकर पवित्र गंगा से मिलने।
इससे पहले कि ऐसा मौसम आए
सीख लो सीख मौसम से।
मौसम जो हमेशा झुकता है वक्त के आगे
सीख लो मानव तुम भी
आगे वक्त के झुकना
वक्त जो दे रहा है संदेश
मानवता मात्र वस्तु नहीं हैं माँ है
और मैं उसकी आवाज हूँ।