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जंगल की सरकार है / हरिवंश प्रभात

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जंगल की सरकार है, जहाँ गिद्धों की भरमार है
अब तो अपने गाँव में रहना भी लगता दुश्वार है।

जये हो भालू, जय हो बिल्ली, जय मतलब की माला,
गाँव-गाँव में आग लगी और घर-घर लटका ताला,
प्रतिभा का होता है मर्दन
शत प्रतिशत होता आरक्षण
बेबसी और लाचारी फैली, होता नर संहार है।

कुर्सी पर भेड़िया बैठा है, कोबरा शहर में घूमे
नैतिकता को छोड़ सभी हैं, भ्रष्टाचार को चूमे,
सब बातें हैं मुश्किल कहना
रो-रोकर कहती है बहना,
नईहर में नक्सलाइट रहते, सनलाइट ससुरार है।

देश की चिंता नहीं किसी को, देश रसातल जाय
अगड़े-पिछड़े देश बाँटकर करें सामाजिक न्याय,
आदिवासी और सदान हैं
अपना करते सब बखान हैं,
डोमिसाइल की बातों पर होता बंटाढार है।

फाकाकशी, गरीबों के घर मंत्री के घर छापा
सबने अपने-अपने हक में लोकतंत्र को तापा,
देश का पैसा बाहर जाये
गाँव की हालत कही न जाये,
इच्छामृत्यु माँग रहे जो खेतिहर मौत कगार है।

जो होता है सहते रहना हमको है धिक्कार
जो चाहेंगे वह होगा अब करते हम हुँकार
सत्य कहेंगे साहस लाकर
एक रखेंगे देश बनाकर,
एक राष्ट्र है, एक धर्म है, एक ही जय जयकार है।