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सुन-सुनकर भँवरे की बातें / हरिवंश प्रभात
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सुन-सुनकर भँवरे की बातें
कली का मन भरमाया है
ऐसा लगता है सजनी
धरती पर फागुन आया है।
तुम मुसकायी सूरज निकला
अलकें बिखरें रात हुई
अंगरस छलका महकी बगिया
दिल से दिल की बात हुई।
होठ की लाली से मौसम ने
अपना रूप सजाया है।
देख तुम्हारा बासंती मन
लहरें चाँद को चाह रहीं
भँवरा मस्ती के आलम में
कलियाँ बेपरवाह रहीं।
आँखों से अमृत घट तूने
जीवों पर ढरकाया है।
रंग-उमंग से सब पागल
गीतों के बोल निकलते हैं
प्रेम पलक पर बैठ गया
बिछुड़े प्रेमी भी मिलते है।
आंचल की महकी आभा ने
मादक रंग बिखराया है।
रंग गुलाल लगाने मुख पर
नव प्रभात चला आया
युग-युग से प्यासे दिल का
देने सौगात चला आया।
देख अछूता यौवन तेरा
कवि का मन ललचाया है।