भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीपावली के दीप ने / हरिवंश प्रभात

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:51, 16 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=ग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दीपावली के दीप ने, ज्योति को जगा दिया,
अंधकार का गला प्रकाश ने दबा दिया।

जितना दिल में प्यार है, भाये उतनी रोशनी
रजनीभर जले दीया, जगमगाये रोशनी
आज सारी नफरतों को प्यार से बुझा दिया।

उत्साह और उमंग से यह भरा त्योहार है,
एकता में शक्ति कहती दीपों की कतार है,
हम भी गले मिलके कहें भेद भाव मिटा दिया।

खिलता रहे वतन-चमन आज नयी आस ले
आसमान से कहो वो धरती से प्रकाश ले
होंठ प्यासे ना रहें, एक सुरसरी बहा दिया।

खत्म हो आतंकवाद, सम्पूर्ण संसार से
लौटे नहीं निराश हो कोई किसी के द्वार से
‘प्रभात’ प्रेम के बिना, कौन है सदा जिया।