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नाहीं लेली छोपिया / हरिवंश प्रभात

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नाहीं लेली छोपिया, नाही रे छतरिया,
अचके में हमरा भिंजवले बदरिया।

कानाफूसी करे सन-सन हवा नीके
हर चले जइसे कवि कलम कई घसीटे,
कोई जइसे तान छेड़े, हाट-बाट डहरिया।

तकिया के फूल जइसे, पानी केरा बुनवां
कहियो भुलाई नाहीं, राती के सपनवां,
निरखे तमाशा जइसे, रूपवा बजरिया।

बहत बेयार से बा एतना अरजिया,
बुझे नाहीं दियवा ना पसरे अन्हरिया,
घर गिरे केकरो ना उजड़े झोपड़िया।

जियरा डेराय ऊपर करिया चदरिया
चुटकी आउ मटकी चलावेला बदरिया,
दादुर, झिंगुर गावे सगरो कजरिया।

गरीबन के होखे डेग-डेग पर छलावा,
पानी के बुलबुला लागे, मकई के लावा,
बरखा के दिन लेतई, भूख के खबरिया।