13
ऐशपरस्ती      के      सामान
लेकिन    पूरा    घर    वीरान
मुझमें   वो   बरसों    से    है
फिर  भी  मुझसे   है  अंजान 
आज     क़यामत     आएगी
वो   खोलेगा   आज   ज़बान
ख़ुद  से  ही   नावाक़िफ़  था
मुझसे  क्या  करता  पहचान 
मैं  अब  ख़ुद  से  ग़ायब   हूँ
मुझमें   रहता    है    सामान
14
आप  कब  किसके  नहीं  हैं
हम   पता   रखते   नहीं   हैं
जो   पता  तुम   जानते   हो
हम   वहाँ    रहते    नहीं   हैं
जानते     हैं   आपको    हम
हाँ   मगर   कहते    नहीं   हैं
जो    तसव्वुर    था    हमारा
आप   तो     वैसे    नहीं    हैं
बात    करते     हैं      हमारी
जो   हमें    समझे    नहीं   हैं
15
मैं  जब   ख़ुद  को  समझा  और
मुझमें    कोई     निकला    और 
यानी     एक    तजुरबा     और 
फिर  खाया  इक   धोखा   और 
होती     मेरी      दुनिया     और 
तू   जो   मुझको   मिलता  और 
मुझको  कुछ   कहना  था  और 
तू    जो   कहता   अच्छा   और 
मेरे     अर्थ     कई     थे   काश
तू   जो   मुझको   पढ़ता   और