ग़ज़ल 22-24 / विज्ञान व्रत
22
आपसे नज़दीकियाँ हैं
इसलिए तन्हाइयाँ हैं
आसमाँ पर ये सितारे
आपकी रानाइयाँ हैं
आशियाँ है ख़ास तो क्या
बिजलियाँ तो बिजलियाँ हैं
कल जहाँ ऊँचाइयाँ थीं
अब वहाँ गहराइयाँ हैं
आप हैं किस रौशनी में
गुमशुदा परछाइयाँ हैं
कर रही हैं शोर कितना
ये अजब ख़ामोशियाँ हैं
सुन रहे हैं लोग जिनको
आपकी सरगोशियाँ हैं
23
क्या तस्वीर बनायी थी
क्या तस्वीर दिखायी दी
क्या पूछो बीनाई की
तू ही तू दिखलायी दी
मैंने लाख दुहाई दी
उसने कब सुनवाई की
उसने आकर महफ़िल में
मंज़र को रानाई दी
नादाँ हूँ क्या समझूँगा
ये बातें दानाई की
24
खेत सुनहरे
मन कुछ कह रे
देख के तुझको
मौसम ठहरे
पहुँचे मन तक
तन के पहरे
कौन सुनेगा
चुप ही रह रे
अपने दुख को
ख़ुद ही सह रे