भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु / शशि बंसल गोयल / रश्मि विभा त्रिपाठी
Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:39, 31 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि बंसल गोयल |अनुवादक=रश्मि विभ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
1
छितरे बीज
वसुधा मुस्कुराई
गोद है भरी।
छिटान बिया
भुइँयाँ मुस्काइसि
कउँछा भरा।
2
भोर की लाली
ओस तृण मुस्काए
नीरव टूटा।
भुर्का कै लाली
ओस तृन मुस्काने
निरव टूट।
3
किनारे छोड़
लहरें बह रहीं
एकाकी मन।
तीर पर्हरि
हलोरैं बहि रहीं
हिय अकाकि।
4
पनाह पाती
निशा के आँचल में
डरी सड़क।
सरन पावै
निसि कै अँचरा माँ
डिरान् सड़क।
5
पौष की भोर
तुहिन कन फैले
अलाव बूझे।
पूस कै भुर्का
तुहिन कन माँचैं
बुतान कौरा।
6
अँधेरी रात
टिमटिमाता तारा
आशा -किरण।
अँन्हेरि रैनि
टिमकइ उङ्गन
आस- किरन।