कल देखोगे / निकअलाय रेरिख़ / वरयाम सिंह
किस चीज़ से तप रहा है मेरा चेहरा ?
चमक रहा है सूर्य
अपनी गर्मी से भर रहा है हमारे उद्यान को ।
किस चीज़ का शोर है यह ?
यह शोर समुद्र का है
चट्टान के पीछे वह दिखाई नहीं देता ।
कहाँ से आ रही है बादाम की यह महक ?
बर्ड चेरी के पौधे खिल उठे हैं पूरे के पूरे ।
सफ़ेद रंग में डूब गए हैं सब पेड़ ।
खिल उठे हैं सेब
सब कुछ चमकने लगा है विविध रंगों में।
यह क्या है हमारे सामने ?
यह तुम खड़े हो टीले पर ।
हमारे सामने से उतरता है उद्यान ।
चारागाह के पीछे चमक रही है खाड़ी की नीलिमा ।
उस ओर पहाड़ हैं और जंगल ।
अन्धकार में डूब रहे हैं चीड़ से ढँके पहाड़ ।
नीले विस्तार में खो गई हैं आकृतियाँ ।
कब देख पाऊँगा मैं यह सब ?
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह
लीजिए, अब यही कविता मूल भाषा में पढ़िए
Николай Рерих
Увидишь
Что лицо мое греет?
Светит солнце, теплом
наш сад наполняет.
Что там шумит?
Море шумит. Хотя за
скалистой горою его и не видно.
Откуда аромат миндаля?
Черемуха вся распустилась.
Белым цветом залиты
деревья. Яблони тоже
цветут. Все разноцветно
сверкает. Что перед нами?
Ты стоишь на пригорке.
Перед нами спускается сад.
За лугом синеет залив.
На той стороне холмы и
леса. Темнеют сосновые
горы. Очертанья уходят
в даль голубую. Когда я
увижу все это? Завтра
увидишь.