Last modified on 16 जून 2022, at 21:43

कर लिया आँखें चुराकर / सुनील त्रिपाठी

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:43, 16 जून 2022 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कर लिया आँखें चुराकर, जब किनारा आपने।
भाव कोमल दृष्टि में, भर क्यों निहारा आपने।

दीप अपने प्रेम का, बुझ जाय कब था ये गंवारा।
आंधियों पर किन्तु मढ़ दें, किस तरह से दोष सारा
आपकी सूरत सलोनी, के अलावा है मिला क्या,
आइने-सा तोड़कर दिल, आपने देखा हमारा

की न कोशिश जोड़ने की, फिर दुबारा आपने।
भाव कोमल दृष्टि में, भर क्यों निहारा आपने।

कामना थी प्रियतमें बस, आपसे केवल प्रणय की
आपको थी आस हमसे, याचना की या विनय की
प्राण भी यदि मांग लेते, हम लुटा देते विहँस कर
हठ नहीं थी यह कहीं से, भी पराजय या विजय की

कर दिया होता ज़रा सा, बस इशारा आपने।
भाव कोमल दृष्टि में, भर क्यों निहारा आपने।

पत्रिका यदि बांच लेते, खोल कर उर की पिटारी।
क्यों भला अनउत्तरित, प्रश्नावली रहती हमारी।
जान लेते भोर कैसे और कैसे सांझ बीती,
आपके बिन रात विरहन, किस तरह हमने गुजारी।

फेर लीं नजरें न कुछ, सोंचा विचारा आपने।
भाव कोमल दृष्टि में, भर क्यों निहारा आपने।