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पहली बर्फ़ / वलेरी ब्रियूसफ़ / अनिल जनविजय

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शरद ऋतु आई है, हुआ ऋतु का पहला हिमपात 
बर्फ़ गिरी है रजत-पर्व सी, शुभ्र चमक रहा प्रभात 
भोजवृक्षों पर झमकें मोती, दुनिया हो गई रुपहली
कल तक दिन थे जो काले-नंगे, बन गए एक पहेली

ऐसा लगता है ज्यों किसी के स्वप्न नींद से जगे हैं
ऐसा लगता है ज्यों सपनों के भूत-पिशाच भगे हैं
रोशन हुए शब्द पुरानी सारी गद्य रचनाओं के
हो गया हो जादू जैसे उन पर, सब ऐसे सजे हैं
 
वाहनों-यानों के चालक-दल सब औ पैदल राहगीर 
आसमान में उभर आया है, श्वेत धूम्र प्राचीर 
नव्य, नवीन, नूतन हो गया मानव का सारा जीवन
पवित्र पावन और अभिनव हो गई यह प्रकृति गम्भीर
 
स्वप्नों ने भी ले लिया जैसे फिर से नया अवतार 
एक खेल में बदल गया फिर सपनों का संसार 
जग की इस सुषमा ने मोहक लुभा लिया मन को
रजत, रुपहला, रूपा, रौप्या है उसका चन्द्रहास 

1895

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता रूसी भाषा में पढ़िए
               Валерий Брюсов
                   Первый снег

Серебро, огни и блестки, -
Целый мир из серебра!
В жемчугах горят березки,
Черно-голые вчера.

Это — область чьей-то грезы,
Это — призраки и сны!
Все предметы старой прозы
Волшебством озарены.

Экипажи, пешеходы,
На лазури белый дым.
Жизнь людей и жизнь природы
Полны новым и святым.

Воплощение мечтаний,
Жизни с грезою игра,
Этот мир очарований,
Этот мир из серебра!

1895 г.