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खुशियाँ चूमें माँ के भाल / प्रेमलता त्रिपाठी
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शूर वीर आल्हा-ऊदल की,गाथा अद्भुत सदा मिसाल ।
कण कण ऋणी रहेगा सदियों,तुमसे भारत माँ के लाल ।
सरहद पर देख तनाव हुआ,जलते घर हैं आँगन आज,
जले दीप आँधी में जैसे,आओ लेकर वही मशाल ।
तड़प रहा हर हिंदुस्तानी,प्रतिपल रुंधा हुआ हर कंठ,
भर दो तुम हुंकार वही अब,अरि का करना क्रिया कपाल ।
संशय पाले कुहरे का हम,छाया है बारूदी शोर,
मौत आवरण लिए खड़ी है,करे तिरंगा यही सवाल ।
यूँ ही भेंट न हमको चढ़ना,क्यों हम बैठे पौरुष हार,
तोड़ेगें हम नींदे उनकी,प्रत्यावर्तन का यह काल ।
चट्टानों से बर्फ पिघलती,स्रोत फूटता अंतर दाह,
उदय शृंग से भर देना है,क्रांति देश हित होगा ज्वाल ।
फूलों से हर क्यारी महके,दे दो तुम फिर से मधुमास
प्रेम बयारें भीनी भीनी,खुशियाँ चूमें माँ के भाल।