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खिलते रहो आधार / प्रेमलता त्रिपाठी

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फूल बनो उपवन के,खिलते रहो ।
हार बनो हार नहीं, सजते रहो ।

वचनामृत मुस्काने,देकर सदा,
मिले जहाँ अंतस तो,मिलते रहो ।

दर्द मिले शूलों से, फूल बनकर ,
रिश्तों में घुलमिलकर,बँटते रहो ।

युग-युग की गाथा जो,सुहाती है,
बनो हीर या रांझे, मिटते रहो ।

खोना पाना जीवन,चलता रहे,
लक्ष्य लेकर शृंग तक,बढ़ते रहो ।

हो सके ज्यों उजाला,कर्म करना,
वर्तिका बन दीप की,जलते रहो ।
 
धूप छाँव हो आँधी,बरखा घनी,
प्रेम मन विश्वास ले,चलते रहो ।