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सुहाती है रोटी / प्रेमलता त्रिपाठी
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भूखे का भूगोल, बताती है रोटी ।
घी चुपडी़ औ लोन, सुहाती है रोटी ।
मिल जाये दो जून,सभी की है चाहत,
महत बडी़ अनमोल,कहाती है रोटी ।
दर दर भटके जीव,बहाये श्रम सीकर,
थकन जगाये भूख,जगाती है रोटी ।
चिकनी चुपडी़ बात,सदा भ्रम फैलाये,
रूखी भरे मिठास,सिखाती है रोटी ।
मिले मान बिन पान,तृषा मिटा न पाये,,
प्रेम बिना नादान, सताती है रोटी ।