भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारा जातीय गौरव / मनमोहन
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:33, 6 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनमोहन |संग्रह= }} <poem> आधी से ज़्यादा आबादी जहां ख...)
आधी से ज़्यादा आबादी
जहां खून की कमी की शिकार थी
हमने वहां ख़ून के खुले खेल खेले
हर बड़ा रक्तपात
एक रंगारंग राष्ट्रीय महोत्सव हुआ
हमने ख़ूब बस्तियां जलाईं
और खूब उजाला किया
और छत पर चढ़कर चिल्लाकर कहा
देखो, दुनिया के लोगो
देखो हमारा जातीय गौरव!