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तैयार हो जाओ / शिवनारायण जौहरी 'विमल'

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उतार कर रख दिया मैंने
अपने बुढ़ापे का वजन,
ज़िंदगी की अर्जित गाठ का पूरा बदन
और हल्का हो गया है
गठरी का वजन और उसकी व्यथा
आँख का रंगीन चश्मा
कान में बजती तरंगे और
सब कुछ जो अर्जित किया था
मैंने अपनी जवानी में
अपनी कहानी में जितनी खाई थी ठोकरे
एक एक सीढ़ी पर चढ़ने के लिए
दुनिया में बढ़ने के लिए
सहज-सा हल्का हो गया हूँ
अंतर की गहराइयों में डूबा हुआ
चाहता हूँ सब तुम्हें दे दू
सारा स्वर्ग जिसने
ढाक लिया है मुझको
मेरी आत्मा को
तुम अपने पैरों पर खड़े होकर
उस शृंगार को ओढ़ने के लिए
और उस पर नयी पगड़ी लगाने के लिए
तैयार हो जाओ यही हो जायेगा
मेरे विचारों का समन
मेरा आचमन मेरे प्राण का
बंधन और मैं आजाद होकर उड़ता फिरूगा
चील कऊओ की तरह आकाश में
मोर के अन्याश नर्तन की तरह धरती पर॥