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श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति
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ॐ
शान्ति मंत्र
ॐ सहनाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु । मा विद्विषावहै ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
रक्षा करो, पोषण करो, गुरु शिष्य की प्रभु आप ही,
ज्ञातव्य ज्ञान हो तेजमय, शक्ति मिले अतिशय मही।
न हों पराजित हम किसी से ज्ञान विद्या क्षेत्र में,
हो त्रिविध तापों की निवृति, अशेष प्रेम हो नेत्र में।
- प्रथम अध्याय
- प्रथम अध्याय / वल्ली १ / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति
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- प्रथम अध्याय / वल्ली १२ / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति
- प्रथम अध्याय / वल्ली १३ / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति
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- प्रथम अध्याय / वल्ली १५ / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति
- प्रथम अध्याय / वल्ली १६ / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति
- द्वितीय अध्याय