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तुम / शंख घोष / रोहित प्रसाद पथिक

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मैं उड़ता फिरूँ
मैं घूमता फिरूँ
मैं सभी दिनमान रास्तों पर
जलता फिरूँ…

लेकिन मुझे अच्छा नहीं लगता
जब घर लौटूँ तो
न देख पाऊँ तुम्हें

‘कि तुम हो ?’

मूल बांग्ला से अनुवाद : रोहित प्रसाद पथिक