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अलविदा / अपअललोन ग्रिगोरिइफ़ / वरयाम सिंह

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अलविदा, अलविदा, तुमसे भी, ओ मेरी सुबह,
अलविदा, ओ मेरी मातृभूमि के प्रिय पुष्प,
तुम्ही हो प्यार रहा मीठा और कड़वा जिससे,
प्यार किया जिसे शेष बची ताक़त से ।

अलविदा, कुछ बुरा याद नहीं करना तुम,
याद न करना न पागल सपनों को, न कहानी-क़िस्सों को,
न इन आँसुओं को जिन्हें कभी-कभी
बहाना पड़ता रहा आँखों को ॥

अलविदा, देश से दूर जैसे निष्कासन में,
मीठे ज़हर की तरह ग्रहण करूँगा
विदाई के अन्तिम शब्दों को
उदास, देर तक निहारती आँखों को ।

अलविदा, अलविदा, स्याह पड़ गया है पानी,
दिल टूट चुका है बहुत भीतर से ...
तैरता जा आ हूँ मैं दूर, बहुत दूर
अनदेखे शब्दों के पीछे, आज़ादी के शब्दों के पीछे ।

  

जून 1858, फ़्लोरेंस

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह

और लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
                    Аполло́н Григо́рьев
                             Молитва

О Боже, о Боже, хоть луч благодати Твоей,
Хоть искрой любви освети мою душу больную;
Как в бездне заглохшей, на дне всё волнуется в ней,
Остатки мучительных, жадных, палящих страстей...
Отец, я безумно, я страшно, я смертно тоскую!

Не вся еще жизнь истощилась в бесплодной борьбе:
Последние силы бунтуют, не зная покою,
И рвутся из мрака тюрьмы разрешиться в Тебе!
О, внемли же их стону, Спаситель! внемли их мольбе,
Зане я истерзан их страшной, их смертной тоскою.

Источник покоя и мира, - страданий пошли им скорей,
Дай жизни и света, дай зла и добра разделенья -
Освети, оживи и сожги их любовью своей,
Дай мира, о Боже, дай жизни и дай истощенья!

1845