टहनियों की सभा ने, हवाओं की सभा ने,
वसंत-कमीसारों की सभा ने
आग पैदा करते हथौड़ौं से
प्रहार किये पृथ्वी के काले अंतरतम में।
ऐंठा दिया पॉपलर के पेड़ों को
एक अंगुली से गिरा दिये घास के ढेर
पी डाला जानलेवा जहर
अपने झुलसे होठों से।
लपक पड़ी पृथ्वी उसी क्षण
लपटों की तरह अयाल सीधे कर
धमकाने लगी, चमकने लगी, चमत्कृत करने लगी
चमत्कारों में विश्वास न करने वालों को।
हवा का हर नया झोंका
गर्जनाओं के हर नये प्रहार के बाद
तोड़ता, फोड़ता और काटता गया सब कुछ
जिसे जमा दिया था बर्फ ने
छिपा दिया था नींद ने।
ऊपर उठाये रखा हर प्रहार को
चुप न पड़ती गूँज ने,
यह गर्म अयस्क था पहाड़ों का
ज्वालामुखी के मुख से जो निकल आया था बाहर।
साँप की तरह बल खाने लगा पृथ्वी का गोला
उषाओं के खोदे ब्रह्माण्ड के अंधकार में
जिनकी जीवंत पुकार थी यह -
'रात्री के आर-पार - मेरे संग
मेरे संग-संसार के आर-पार।'
और यह घटित हुआ इस भूमि में
इसे संभव कर सका वह देश
जिसके युगों पुराने विवेक को
विस्फोटित किया गरजते बमों ने।
हमें भले ही महसूस न हो हमारा उड़ना
पर यदि झूमने लगा है हृदय
हम टालेंगे नहीं वसंत की इस सभा को :
देखेंगे-यह लाल हथौड़ा कैसे करता है प्रहार।
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Николай Асеев