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वळै कीं दूजौ / चंद्रप्रकाश देवल

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सगळा जांणै
कदास इण सारू आकबाक नीं व्है
अेक गोळमोळ दुनिया
जिकी आय जावै मतै ई गुड़कती
म्हारै बिचाळै
म्हैं चकन-बकन

वा इज देवै है उडीक री दवायती
औ जांणण में
म्हनै कित्ती जेज लागी
पण, लोग-बाग घणा पैली सूं उडीकता हा
कजांणा कांईं

अबै औ कुण तै करै
कै वै अर म्हैं
आपौ-आप री खाली-माली जरूरतां नीं उडीकै हा
वळै कीं दूजौ इज

अेक घांदौ वळै
औ दूजौ वळै कांई है?