Last modified on 17 जुलाई 2022, at 16:08

ओळूं नै अवरेखतां (5) / चंद्रप्रकाश देवल

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:08, 17 जुलाई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्रप्रकाश देवल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आपरी गुम्योड़ी सुवास री भाळ में
म्हारै नाक रा फोरणा थारै गांव आया है।
 
जाणता नीं हा जद अै के बास रै सुंकारो कद लागै। अर कद बदकारो लागै। थारा सांस सेंमूदी बायरी में वभरोळ घोळता हा आपरी हूंस रै पांण। नीं जाणता साफ-साफकै किसी बायारी में भेळणौ है आपरौ आपांण। आ व्ही जांणै बोलविहूणी बतळावण। आंख बायरौ सुपनौ। इण आपाधापी मे कद, कुण, कठै खपणौ। पण -

जाणूं तो बस औ इत्तौ इज जांणूं कै
म्हारै नांव रा आखर थारै नांव समाया है