Last modified on 17 जुलाई 2022, at 16:09

ओळूं नै अवरेखतां (6) / चंद्रप्रकाश देवल

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:09, 17 जुलाई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्रप्रकाश देवल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कदै-कदै किणी दूजै री ओळूं
अपांरै सपनै गफलत सूं आय बाजै।

पछै कांई? आप जांणौ ई कोनी तो ई रूं-रूं में रास रचै। आप उण नाच री ताछ में अणहद भाळौ। अणहद व्है कांई भलांई औ कोनी जाणौ। आप आपरौ आपौ उछाळौ। खुद रौ भलौ-भूंडौ कीं नीं भाळौ। पण पराई तो हरमेस पराई रैवै आप आ क्यूं कोनी जाणौ। खुदोखुद नै अेकूकी परख री खराद माथै पतवांणौ।

करौ भलांई आप आपरौ मन मोळौ
अैड़ौ करणौ किणी नै कद छाजै?