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अतीत की शिलाओं पर / प्रतिभा सिंह

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अतीत की शिलाओं पर
उगा हुआ इतिहास
कितना विभत्स और भयानक है।
उसकी एक-एक टहनी से
रिसता हुआ खून
बता रहा है कि
मनुष्य की जिह्वा की प्यास
मनुष्य का गर्म खून है।
और इसी प्यास से अकुलाकर उसने
सिंधु, सुमेरिया, माया अथवा मेसोपोटामिया
को मिटाकर
मध्यकालीन बर्बरता को जन्म दिया
घोड़े के टापों, तलवारों से टपकते हुए रक्त
और आदमखोर हो चुके इंसानों की खूंखार आवाज
तथा रक्त-मांस की सड़ांध से रुग्ण हो गई मानवता
सचमुच कष्टकारी है।
सभ्यताओं की पीठ पर
असभ्यताओं का अंकुर फूटना
वास्तव में इतना भयावह था
कि प्रसव वेदना भी स्तब्ध होकर शांत हो गई
कि मादाएँ चीखा नहीं करती हैं
और यही परम्परा है
नवीन के स्वागत में
प्राचीन के चित्कार को भूल जाने की।