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संभावनाओं का इतिहास / मृत्युंजय कुमार सिंह

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अनंत है संभावनाओं का इतिहास
मेरे अभिन्न ह्रदय!
जन्म की अचेतन स्थिति से लेकर
मृत्यु के नीरव सन्नाटे तक फैली

इन्हीं संभावनाओं में
घूमता हूँ मैं वातचक्र की तरह
अपनी नियति का गर्द
अपने सीने में डाले
भागता हूँ
इधर-उधर की दिशाओं में
बदलते दबाव के साथ

खोजता हूँ एक ऐसी दृष्टि का साथ
जो मेरी तरह
शब्दों से च्युत
अर्थों की कहानी कहने ठहरी हो
जो हृदय से शुद्ध
भावों से गहरी हो

छोड़ आया हूँ
न जाने कितने मोड़
पार कर आया हूँ
अनगिनत चौरस्तों का द्वंद्व
लेकिन बचाता आया हूँ अब तक
अपनी वह अनकही
शब्दों से च्युत अर्थों की कहानी

ज्यों ज्यों घूमता गया हूँ मोड़
बदलती गयी हैं
चौहद्दियाँ मेरे मूल्यों की
बढ़ता गया है बोझ
अकारण ही संचित अनुभवों का
छोटा होता गया हूँ मैं
और शायद भंगुर भी

अब जीता हूँ मैं
अपना ही कमाया बौनापन
लेकिन ढूंढता हूँ अब भी
शेष बची संभावनाओं में
वही एक दृष्टि
जो ऐसी ही एक कहानी कहने ठहरी हो
जो हृदय से शुद्ध हो
भावों से गहरी हो।