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हेली-सहेली / विशाखा मुलमुले
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पीठ से पीठ टिकाए
बैठीं हैं हेली-सहेली
सुन रही है
सुना रही है अपना दुःख-दर्द
मालूम है उन्हें,
मिलायेगी नजरें तो
पिघल जाएगा बचा हुआ हिम खंड
बढ़ जाएगा जलस्तर!
पीठ से पीठ टिका
वे बढ़ा रहीं हैं हौसला भी
बन रहीं हैं कमान—सी मेरुदंड का
एक मजबूत आधार
जैसी होती है, पतंग की कमान को
थामे दूसरी सीधी बांस की डंडी
ताकि,
उडान भर सके दोनों की जीवन रूपी पतंग
और छू सके आकाश!
पीठ से पीठ टिका
देख रहीं है संग साथ
दो दिशाएँ भी / दशाएँ भी
देख रहीं है पूरब और
देख रहीं है पश्चिम भी
सोच रहीं है
काश!
दुनिया की तमाम स्त्रियाँ भी
यूँ ही टिका लें पीठ से पीठ अपनी!