भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इल्लियाँ / विशाखा मुलमुले
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:15, 25 जुलाई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विशाखा मुलमुले |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फूलों में फूलों के रंग की इल्लियाँ
फलों में फलों के रंग की
बीजों में बीजों के ही रंग की इल्लियाँ
इसी तरह पत्तों में , शाखाओं और तनों में
उसी के बीच उसी के रंग की इल्लियाँ
जड़ों के निकट भूमि में भी
लाल , काली और माटी के रंग की इल्लियाँ
पहचान की आदत न हो तो
दिखती ही नहीं एकरूप हुई इल्लियाँ
जिस पर आश्रित
उसी को धीमें - धीमें चट कर जाती इल्लियाँ
दिखती हैं मुझे गाँव , शहर , देश के
भीत के भीतर - बाहर
मनुष्यों के बीच मनुष्यों के रंग की
मौकापरस्त इल्लियाँ