भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नन्दा देवी-9 / अज्ञेय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:33, 10 नवम्बर 2008 का अवतरण
कितनी जल्दी
तुम उझकीं
झिझकीं
ओट हो गईं, नन्दा !
उतने ही में बीन ले गईं
धूप-कुन्दन की
अन्तिम कनिका
देवदारु के तनों के बीच
फिर तन गई
धुन्ध की झीनी यवनिका।