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जब नाम पुकारा है / रश्मि विभा त्रिपाठी

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1
जब नाम पुकारा है
प्रिय का प्रेम मुझे
देता हरकारा है।
2
तुमको ऐसे पाया
तन के संग जुड़ी
रहती है ज्यों छाया।
3
बस प्यार निबाहूँ मैं
बिन तेरे कुछ भी
बिधि से ना चाहूँ मैं।
4
अपना तो इक मन है
टूटेगा कैसे
साँसों का बन्धन है।
5
प्राणों की है थाती
तेरी प्रीति प्रिये
सौ- सौ सुख बरसाती।
6
जादू- सा कर देते
तुम हौले हँसके
मेरा दुख हर लेते।
7
मुझको सबसे प्यारे
जगमग मैं तुमसे
आँखों के तुम तारे।
8
माही की मधु बानी
सब दुख हर लेती
सचमुच शुभ वरदानी।
9
माही की दो बातें
सुनकर मैं पाऊँ
सुख की सब सौगातें।
10
मन की किसने जानी
मेरी पीर सदा
तुमने ही पहचानी।
11
तुमको जबसे पाया
मन के मरुथल में
मधुमास नया आया।
12
बरसों की आदत है
कैसे भूलूँ मैं
तू खास इबादत है।