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मेरे आगे हार गई थी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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घिरी उदासी जब जीवन में
तब मैंने त्योहार मनाया ।
रोते रहे लोग जब जीभर
आँसू पीकर मैं मुस्काया।

रो-रोकर जो दिन कटने थे
मैंने वे सब हँसकर टाले।
मुस्कानों में दबकर फूटे,
पड़े पगों में जो-जो छाले।

मेरे आगे हार गई थी
जीवन की हर इक मजबूरी।
गिरकर उठकर पूरी की थीं,
धरती से अम्बर की दूरी।