भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बुढ़ापा / एन सेक्सटन / देवेश पथ सारिया
Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:40, 12 अगस्त 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एन सेक्सटन |अनुवादक=देवेश पथ सारि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं सुइयों से डरती हूँ
रबर की चादरों और ट्यूब से डरती हूँ
मैं डरती हूँ अनजान चेहरों से
और अब मुझे लगता है कि मृत्यु क़रीब आ रही है
मौत की शुरुआत सपने जैसी होती है
बहुत सारी चीज़ें और मेरी बहन की हॅंसी
हम दोनों छोटी हैं,
पैदल चलती हुई
जंगली ब्लूबेरी इकट्ठी कर रही हैं
हम जा रही हैं डैमरिस्कोटा
ओह सूजन, वह रोने लगती है,
तुमने अपने नए कपड़ों पर दाग़ लगा लिया
मेरा मुँह भरा हुआ है—
कितना मीठा स्वाद है
और मीठा नीलाभ यह
ख़त्म होने को है
डैमरिस्कोटा की राह में
क्या कर रही हो तुम?
मुझे अकेला छोड़ दो!
तुम्हें दिख नहीं रहा कि मैं सपने में हूँ?
और सपने में तुम कभी
अस्सी साल के नहीं होते।