कब जाना होगा अंत से अनंत की यात्रा पर
जहाँ नहीं होगा कोई राग अनुराग
नहीं होगा कोई कलरव विहाग
मान सम्मान अपमान से दूर
अभिमान स्वाभिमान से दूर
नहीं होगी ईर्ष्या या द्धेष
न ही होगा प्रेम अप्रेम
किसी भी प्रकार से गुण दोष से मुक्त
विचरण होगा सिर्फ आत्मा का आत्म को जानने के लिए
न ही होगा कोई अहम्
स्व से मुक्त अवचेतन चेतन से परे
जहाँ होंगे सिर्फ गीता के कृष्ण
हाथ फैलाये हुए
आत्मस्वरूप को स्वयं मैं विलीन करने ले लिए
नहीं रहेगा जहाँ अस्तित्व द्वय का
होगा जहाँ सिर्फ एकात्मस्वरूप।