Last modified on 27 अगस्त 2022, at 01:33

राम बनना क्या हँसी / ज्ञानेन्द्र पाठक

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:33, 27 अगस्त 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञानेन्द्र पाठक |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

राम बनना क्या हँसी परिहास है
राम का जीवन कठिन वनवास है

हों परिस्थितियाँ भले कितनी विकट
हमको लड़ने का सतत अभ्यास है

द्वंद के अब छन्द चारों ओर हैं
अब कहाँ मङ्गल की कोई आस है

कर्म है व्यक्तित्व से बिल्कुल अलग
हाय रे कितना विरोधाभास है

एक भौंरा लुट चुके उद्यान में
आज भी लेकर के आता प्यास है

गाँव का पनघट वो खन-खन चूड़ियाँ
शेष उनका आज बस आभास है