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ख़ुद पता चल जाएगा / ज्ञानेन्द्र पाठक

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ख़ुद पता चल जाएगा, ज़ब्त की औक़ात का
कर के देखो सामना, हिज्र की इक रात का

जायज़ा ले लो मियाँ, मुल्क के हालात का
फिर उठाओ फ़ायदा, क़ौम के जज़्बात का

हिजरतें करनी पड़ीं, हो के पैग़म्बर उसे
हर कोई पाबन्द है, वक़्त के लम्हात का

हिचकियों का सिलसिला, चल रहा है रात से
क्या किसी ने था किया, ज़िक्र मेरी बात का

सब उड़ाते हैं हँसी, सुन के मेरी दास्ताँ
क़द्रदाँ कोई नहीं, मेरे एहसासात का

जब भी देखूँ आइना, शक्ल तेरी ही दिखे
कौन ज़िम्मेवार है, मेरे इन हालात का

हर तरफ़ हैं ग़म ही ग़म, हर तरफ़ हैं सिसकियाँ
कोई 'पाठक' दे पता, अम्न की सौग़ात का !