ढाई आखर के प्रेम वृक्ष / गीता शर्मा बित्थारिया
बस थोड़ी सी भूमि पर
पवन के पालने में
पी स्नेह का अमृत नीर
नरम धूप की अंकमाल में
प्रेम जैसे ही पनप जातें हैं
ढाई आखर के प्रेम वृक्ष
लुटाते है सहर्ष प्राण
असीमित आजीवन अनगिनित
निश्छल प्रेम के उदार उपहार
वृक्ष होते है प्रेम के पर्याय
कलियों को सुनाते भ्रमर गीत
तितलियों को बांटे मकरंद
समीर में घोले सौंधी सुगंध
पक्षी को सहज नवल नीड़
वीभिक्षु को मुक्त हस्त से मृदु फल
थके पथिक को दें शीतल छाया
धरा को पहनाते हरित वसन
ऋतुओं की चुनरी में विविध रंग
हवाओं में गाते कलरव गीत
नदीयों में घोली पुण्य मिठास
द्वार पर स्वागत आतुर वंदनवार
घर परिवार में सारे व्रत त्यौहार
प्रेमियों को हृदय सी गुप्त कोटर
रात रानी को मृदु चन्द्र हास
पुष्प लदी लताओं को संबल
स्त्री वेणी में गूंधे पुष्प गुच्छ
ठंडे चूल्हे में सुलगाते जठर आग
खेत खलिहानों ने भरे अन्नकोठार
निर्बल पशुओं को देते पुष्ठ आहार
झोंपड़ी को ढांका दे पूस का छप्पर
गृहणी को सौंपे विविध मसाले
सांझ दिया को देते तुलसी का विरवा
सौभाग्यवती को वरदे वट सावित्री
कन्याओं को सौंपे मन वांछित वर
फागुन को रंग बिरंगा रूप मलंग
बसंत आया अनंग प्रेम की पीत उमंग
सावन को भेजे नेह निमंत्रण
शरद ऋतु को प्रथम शीत लहर
अमराई में भर दी कोयल कूक
शुष्क थके मेघों में भरते नेहनमी
अटूट श्रद्धा के धागे से लिपटी मन्नत
बच्चों भरें नभ छूते झूले की पींग
सूरज के घोड़ों को मिलती धूप से मुक्ति
चांद से करते मनुहार कभी लुका छिपीई
तारों को ठहराते दिन की सराय में
बूंदों को ढक लेती है पत्तों की छतरी
इतिहास में सत्य के बने साक्षी
वेदों को सुलभ लिपिबद्ध ताड़पत्र
ऋषियों की यज्ञ बेदी को समिधा
नवयतियों को देते गुरुकुल ज्ञान
सिया राम का भोग कंदमूल है
राधा माधव उर में कदंब माल्य
महाबुद्ध को तप से बोधी ज्ञान
महावीर को सृजित कैवल्य मार्ग
गोपियां मुदित है कुंज गली में
राधा का हो निधिवन में रास
मीरा को इकतारा गाए गिरधर गोपाल
चैतन्य महाप्रभु को वृंदावन वास
पाणिनि से लिखवाते व्याकरण
पतंजलि को सिखलाते प्राणायाम
चरक को सौंपी औषध मंजूषा
शंकर को पढ़ाया वेदांत वाद
पृथ्वी को जैव विविधा की सम्पदा
मृग छोनों को उन्मुक्त कुलांच
सिंह को मिले गहन अभयारण्य
भूमंडल पर ताना झीना सा आवरण
ढाई आखर का प्रेम के साथ
ढाई आखर की होती है भक्ति
ढाई आखर वाले वृक्ष पर्याय हैं
ढाई आखर वाला प्रेम सघन
शिव सम करते स्वयं विषपान
जीवों को करते अमृत दान
ढाई आखर के वृक्ष में समाये
ब्रह्मा विष्णु और शम्भु त्रिदेव