भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कब से तुम गा रहे! / ठाकुरप्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:11, 7 सितम्बर 2022 का अवतरण
कब से तुम गा रहे, कब से तुम गा रहे
कब से तुम गा रहे !
जाल धर आए हो नाव में
मछुओं के गाँव में
मेरी गली साँकरी की छाँव में
वंशी बजा रहे, कि
कब से तुम गा रहे
कब से हम गा रहे, कब से हम गा रहे
कब से हम गा रहे !
घनी-घनी पाँत है खजूर की
राह में हुजूर की
तानें खींच लाईं मुझे दूर की
वंशी नहीं दिल ही गला कर
तेरी गली में हम बहा रहे
कब से हम गा रहे !
सूनी तलैया की ओट में
डुबो दिया चोट ने
तीर लगे घायल कुरंग-सा
मन लगा लोटने
जामुन-सी काली इन भौंह की छाँह में
डूबे हम जा रहे,
कब से हम गा रहे !