भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आई बिल्ली / रामेश्वर काम्बोह ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:01, 16 सितम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} Category:...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जब से घर में आई बिल्ली
खा गई दूध -मलाई बिल्ली।
ताक लगारे बैठी रहती
बन गई चुश्त सिपाही बिल्ली।
बिल में चूहे दौड़ लगाते
भूख के मारे बैठ न पाते।
बाहर आने से अब डरते
दिनभर उपाय विचारा करते।
फिर भी घबराते रहते हैं
कर न दे कहीं खिंचाई बिल्ली।
हफ़्ते भर में हिम्मत टूटी
बचने की उम्मीद भी छूटी।
सब बोले –‘अब छोड़ो यह घर
दिल से नहीं हट पाता डर ।
कहीं भी गुज़ारा कर लेंगे’
सुन मन में मुस्काई बिल्ली।
-0-