अनुराग और द्वेष / सुभाष काक

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मैं तुमसे अब प्रेम नहीं करता
यह सच है‚
भले ही मुझे तुम्हारी याद
आती है।

 

मुझे तुमसे द्वेष है अब‚
यद्यपि यह द्वेष
प्रेम का चिह्न है।

 

जो मैं तुम्हें
चाहता नहीं‚
तुम भी मुझे
भूल गई।

 

मुझे तुमसे प्रेम था‚
और कदाचित
तुम्हें भी कभी
मुझसे प्रेम था।


पर तुमने मेरा नाम
अपने हृदय से
मिटा दिया‚
मैं भी दूर देश
तुम्हारा अपवाद
करता हूँ।

 

परंतु यदि तुम्हारी दृष्टि
वाटिका के दूर कोने में
उस पेड़ पर पहुँचकर
जो मैंने बोया था
स्मृति को जगाए
और तुम मेरा नाम लो
मैं तत्काल चला आऊँगा।

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