मेहनत कश हाथ / महेश कुमार केशरी
चाय बगानों में काम
करने
वाली सुमंली ने देखा
बढ़ते, तेल का भाव
आटा और चावल का
भाव
और तो और इस बीच
रिक्शे से आने-जाने
का किराया भी बढ़ा
दस-की जगह बीस रुपये
हो गया किराया
लेकिन, नहीं बढ़ी उसकी
मजदूरी पिछले दस सालों से,
कभी
वो अपनी साडी़
में पैबंद लगाती रही
अलबत्ता, इन दस
सालों में
वो बदस्तूर खटती
रही
गर्मी की चिलचिलाती
हुई धूप में भी
जाड़े के बहुत ठँढ
भरे दिनों में भी
तब, जब हम गर्म
लिहाफ
में दुबके पड़े रहते थें
ताकि, हमारी प्याली में
परोसी जा सके गर्मा-गर्म
चाय
उस, चाय, की प्याली को
पीते हुए हम पढ़ते रहे
अखबार,
तमाम दुनियाँ-जहान
के मुद्दे
मँदिर मस्जिद, लव-जेहाद,
हिंदू-मुसलमान,
अमेरिका-यूरोप,
सीरिया-इराक, युद्ध,
खेल और मनोरंजन
तमाम मुद्दों पर हमने
चर्चा की सिवाय
सुमंगली के मुद्दों के