भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चींटी / शंख घोष / शेष अमित

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:17, 22 अक्टूबर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंख घोष |अनुवादक=शेष अमित |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

री चींटी !
तेरे पंख निकले
अब सहन नहीं होता ।

पंक्तिबद्ध पंक्तिबद्ध पंक्तिबद्ध चेहरे
अब सहन नहीं होता,
अलमारी, प्लेट, बरामदा, किताब, उदास मेज़पोश,
इस गहन रात में छीन लोगी क्या मेरी शैय्या भी ?

चींटी !
घर कहाँ है री तेरा ?
उड़ जा वहीं पंख लगा,

नहीं तो, कूद पड़ नदी में,
या जलाकर आग बड़ी कोई, नाच घेरकर,
पंख निकले, निकले पंख तेरे,

री चींटी !
अब सहन नहीं होता ।

मूल बांगला से अनुवाद : शेष अमित