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डोर चाँदनी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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डोर चाँदनी
बना चाँद का झूला
तुम्हें झूला दूँ,
थकान चूमकर
दूर भगा दूँ
ये बिखरी अलकें
बैठ सँवांरूँ
पोंछ भीगी पलकें
दर्द हरूँ मैं।
सपन सुनहले
दे दूँ तुमको
दीप तारक दल
बालूँ पथ में
अंक में छुपाकर
तुम्हें ले चलूँ
दूर गगन पथ
कोई न रोके
मुस्कान तुम्हें सौंप
मैं भी चल दूँ
ताप नहीं छू सके
तुम्हें वह बल दूँ।
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