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दहके फूल पलाश के / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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आँचल में छुपकर शरमाए, दहके फूल पलाश के
रोम-रोम के साँस हो गए, प्यासे मधुर सुवास के ।
भोर उतर आई माथे पर
बिन्दिया में सिन्दूरी रूप,
तन की सहमी झुकी डाल पर
लिपटी आलिंगन की धूप ।
तैर गए पलकों पर आकर, सपने मदिर उजास के।
फूल खिला या अधर पंखुड़ी-
है डूबी नरम गुलाब में
या बसन्त का भीगा यौवन
आँखों से ढली शराब में।
लाज-भरी बाहों में बँधकर, झुके नयन संन्यास के।
कोमल कर की एक छुअन
बन गई युग-युग का इतिहास,
इन प्यासी अलकों की छाया
हो गई उलझन का मधुमास।
सुधियों की व्याकुल छाती में, अंकुर फूटे आस के।
-0-( 28-9 -76: आकाशवाणी गौहाटी 10 -12-79)