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परिखा / जय गोस्वामी

खेतों के बीच अचानक,
परिखा-- भस्म का काठ, भट्ठे का गड्ढा!

गाँव-गाँव उड़ते हैं काक,
झाँककर फुर्र हो जाती है गौरैया!

खुदे हुए गड्ढे में मुट्ठियाँ बांधे,
काठकोयला हुई, जली-झुलसी देह लिए,
टकटकी लगाए, देख रही है हमारी ओर
हमारी ही बहन-- तापसी मालिक!

बांग्ला से अनुवाद : सुशील गुप्ता