Last modified on 8 नवम्बर 2022, at 23:34

चढ़ गया सबकी नज़र में / ओंकार सिंह विवेक

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:34, 8 नवम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओंकार सिंह विवेक |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चढ़ गया सबकी नज़र में,
बात है कुछ उस बशर में।

सच का हो कैसे गुज़ारा,
छल-कपट के इस नगर में।

पाँव के छाले न देखे,
हमने मंज़िल की डगर में।

हमसफ़र भी है ज़रूरी,
ज़िंदगानी के सफ़र में।

रौशनी की कौन सुनता,
थी अँधेरों के असर में।

कोई भी कब है मुकम्मल,
कुछ कमी है हर बशर में।

क्या भला अख़बार पढ़ना,
डर मिलेगा हर ख़बर में।